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Monday, March 10, 2008

विख्यात मेन्डोलिन वादक श्री महेन्द्र भावसार का ७६वां जन्मदिन

श्री महेन्द्र भावसार फिल्मी संगीत की दूनिया के जानेमाने मेन्डोलिन वादक रहे । हालाकी मैं रेडियो के अलावा फिल्म संगीत के अन्य कोई सोर्स से जूडा नहीं था । साझोमें हार्मोनियम, माऊथ ओर्गन, बांसूरी, और बेन्जो ( जिसको ट्रायसेकोटो या बूलबूल तरंग नाम से मैं ज्न दिनो जानता था ) , या शादीमें बजनेवाला एक अपने आपमें खाश़ किसमका क्लेरीनेट (जिसको शायद ग्राम्य गुजरातीमें पिपूडी बोलते थे ) त्क ही करीब सिमीत था । इन दिनों करीब १९६२ से रेडियो से बजने वाली फिल्मी धूनों पर मेरे कान ठहरने लगे और प्रथम घ्यान आकर्शित हुआ पियानो-एकोर्डियन पर जो श्री एनोक डेनियेल्स बजाते थे । तो वह स्वाभाविक है कि मूझे अच्छी खिसम के हार्मोनियम जैसा लगा । इसी तरह मेन्डोलिन सबसे पहेले श्री महेन्द्र भावसार का सुना , जो सुपर क्वोलिटी का बेन्जो लगा । पर श्री एनोक डेनियेल्स की धूने तो काफी मात्रामें आती थी । जब की करीब तीन या चार साल बाद फिल्में प्यार मोहोबत, तीसरी मंझील, तीसरी कसम, आयी । उन के एक एक गाने को तथा अन्य एक गाने को ले कर एक ई. पी. श्री महेन्द्र भावसार साहब की आयी । इसके कई एक साल बाद करीब १९६७में श्री मनोहर महाजन साहब रेडियो सिलोन गये तो उन्होंने श्री महेन्द्र भावसार साहब की आवारा (दो धूनें) फिल्म जिन्दगी (पहेले मिले थे सपनोमें – जो आज मेरी श्रीमती पद्दमिनी परेरा को फोन पर दी हुई इस सालगिराह की माहिती के आधार पर पद्दमिनी जीने आज सुबह ८ बजे प्रस्तूत की थी) तथा ससुराल ( तेरी प्यारी प्यारी सुरत को) पूराने सुस्त पडे खजाने से ढूंढ निकाली थी और प्रस्तूत करने लगे थे, जिसमें वाद्यवृन्दमें अन्य कोई वाद्य नहीं था, सिवाय की स्व. सुदर्शन अधिकारी के तबले ) ।
उन्होंनें श्री अनिल विश्वासजी से आनंद मिलींद तक फिल्मोंमें बजाया है ।
ज्नसे मेरा परिचय श्री एनोक डेनियेल्स साहबने करवाया था और बताया (दूसरी एक और मुलाकात के समय )था कि, एच. एम. वी. के सितारें कार्यक्रम के शिर्षक संगीत का शुरूआती हिस्सा भी श्री महेन्द्र भावसार साहब का बजाया हुआ है (एल. पी. सितार गोझ लेटिन-मूख्य साझ सितार पर श्री जयराम आचार्य-वाद्यवृन्द निर्देशन-श्री एनोक डेनियेल्स) ।
श्री महेन्द्र भावसार साहब को आज के दिन के लिये बहोत बधाईयाँ , और स्वस्थ तथा लम्बी आयु के लिये शुभ: कामना । इस बार मेरे समय अभाव की कमी के कारण उनसे मिलना नहीं हुआ । पर आज उन्हें फोन पर बधाई तो दी थी ।
मेरी मुम्बई यात्रा का अन्तिम पेरा रेडियो श्री लंका के १९७७ से १९८० तक उद्दघोषक रहे रिपूसुदन कुमार एइलाबादी के लिये है । जो मैंने लिखा तो था , पर निंद के समय कोई गलती से डिलीट हो गया था । इस लिये क्षमा प्रार्थी हूँ ।

2 comments:

Udan Tashtari said...

श्री महेन्द्र भावसार को बहुत बधाई एवं शुभकामनायें.

annapurna said...

महेन्द्र जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं !

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